भारत आज भी है लेप्रोसी की विश्व राजधानी
देश को आधिकारिक रूप से लेप्रोसी या आम बोलचाल में कहें तो कुष्ठ रोग से मुक्त हुए 12 साल होने को आए मगर चिकित्सा जगत के विशेषज्ञ आज भी इसे लेकर चिंता से घिरे हुए हैं। दरअसल साल 2005 में जब देश में नए कुष्ठ रोगियों की संख्या प्रति 10 हजार आबादी पर 1 से भी कम रह गई थी तब भारत को कुष्ठ मुक्त घोषित किया गया था। मगर भारत में आज भी दुनिया के सबसे अधिक कुष्ठ रोगी मौजूद हैं।
दादर एवं नगर हवेली की भूमिका
पूरी दुनिया के 58 फीसदी कुष्ठ रोगी भारत में हैं। भारत में बीते वर्ष तक एक लाख 25 हजार 785 नए कुष्ठ रोगी सामने आए हैं। भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016-17 में केंद्र शासित क्षेत्र दादर एवं नगर हवेली में प्रति 10 हजार की आबादी पर 6.2 फीसदी नए कुष्ठ रोगी सामने आए हैं। वर्ष 2007-08 में ये आंकड़ा 1.88 केस प्रति 10 हजार आबादी का था। यानी कि पिछले आठ सालों में कुष्ठ के मामलों में नाटकीय उछाल आया है।
ऐसा क्यों हुआ
देश में मेडिकल शोध की अग्रणी सरकारी संस्था भारतीय आयुर्विज्ञान शोध परिषद (आईसीएमआर) के पास शोधकर्ताओं द्वारा जमा किए गए एक अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि दादर नगर हवेली में खराब आबोहवा, बड़ी जनजातीय आबादी, घने जंगल और पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण कुष्ठ के मामलों में ऐसी बढ़ोतरी देखने को मिली है। ये स्थिति तब है जबकि केंद्र सरकार का कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम यहां ज्यादा मजबूत हुआ है।
फैलने का खतरा बरकरार
खास बात ये है कि 2005 में भारत के कुष्ठ मुक्त घोषित होने के बाद चार राज्यों को छोड़कर देश के अन्य राज्यों में कुष्ठ के मामलों में तेज गिरावट दर्ज की गई। हालांकि दादर एवं नगर हवेली में यह बीमारी लगातार बढ़ ही रही है। आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल कहते हैं कि किसी भी समाज में कुष्ठ रोग के फैलते जाने का मुख्य कारण ये होता है कि वहां किसी मरीज को सही इलाज नहीं मिल पाया। इसके कारण वह मरीज इस बीमारी को दूसरों तक पहुंचाने का जरिया बन जाता है। चूंकि ये एक लंबी अवधि की बीमारी है और बहुत हद तक संक्रामक है इसलिए बिना इलाज वाले एक मरीज से दूसरे में इसके फैलने का खतरा बना रहता है। यदि बीमारी को खत्म करना है तो ये जरूरी है कि बीमारी के वाहक ऐसे मरीजों को तलाश कर उनका इलाज किया जाए ताकि बीमारी की जड़ पर प्रहार हो सके।
क्या है ये बीमारी
गौरतलब है कि कुष्ठ त्वचा एवं तंत्रिका तंत्र की संक्रामक बीमारी है और इसकी शुरुआत त्वचा पर हलके रंग के चकते से होती है। यह एक दम चुपचाप शुरू होता है और इसके बाद त्वचा, नर्व और आंखों को अपना शिकार बना लेता है। अगर लंबे समय तक इलाज न हो तो ये बीमारी शरीर को स्थाई रूप से अपंग बना देती है। कुष्ठ ऐसी बीमारी है जिसे आज भी समाज में गंदा माना जाता है और इससे प्रभावित मरीजों को समाज में भेदभाव सहना होता है। बीमारी से अधिक ये भेदभाव ही मरीज के लिए गंभीर चिंता का कारण होता है जिसके कारण लोग घरों में कैद होकर रह जाते हैं जो कि इस बीमारी को और बढाने का कारण बन जाता है।
मल्टी ड्रग थेरेपी कारगर
डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं कि यदि इस बीमारी का शुरू में पता चल जाए तो मल्टी ड्रग थेरेपी से बीमारी को शरीर में फैलने से रोका जा सकता है मगर यदि इसका इलाज देर से शुरू हुआ हो तो शरीर पर इस बीमारी गंभीर निशान जीवन पर्यंत बने रह जाते हैं जो कि मरीज की सामाजिक प्रताड़ना का कारण बनते हैं। जरूरत इस बात की है कि कुष्ठ के रोगियों को समाज में अलग-थलग न किया जाए। ये समझना जरूरी है कि इलाज के बाद ये मरीज बिलकुल आम लोगों की तरह जिंदगी गुजार सकते हैं, शादी कर सकते हैं, बच्चे पैदा कर सकते हैं। हालांकि इसके लिए पूरी तरह प्रशिक्षित स्टाफ की जरूरत है जो जागरूकता फैलाने का काम कर सकें।
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